सुंदर अपना गाँव
सुंदर अपना गाँव
सुंदर सा अपना गाँव लागे
शीतल पेड़ की छाँव लागे
बड़े दिनों बाद हुआ आना
चरण स्पर्श कर पाँव लागे
माटी की ख़ुशबू सौधी-सौधी
गाँव पूरा महर-महर महकाये
बाते तो है जरा सीधी-सीधी
ढूढ़े शहर-शहर न कही पाये
गाँव में है इक सुकून सी हवा
इसी आबो हवा में खींचे जाये
शहर की भाग दौड़ से हो परे
सुखद जिंदगी गाँव में बिताये
हाव भाव बड़ा कलित गाँव के
आठों अंग रंग में डूबत जाये
मादक महुआ महर महकत हे
सत्कार करत महु पेय पिलाये
गमन कर रहे आज तो सभी
हर गाँव से शहर की ही ओर
पैसे का भूख मिटा है कभी
उस पथ का न अंत न है छोर
गाँवो में खेल भी मिट्टी से जुड़ा
पेड़ो के छाव में अमीया तोड़ा
बिच दोपहर चक्का चला के
दोस्तों की याद में रस्ता मोड़ा
वो गाँव का स्वप्न और गलियाँ
देख खुलकर आज मुस्काई है।
अभी-अभी बागों की कलियाँ
खिली और याद गाँव आई है।
भोर हुआ खिली कलियां
भौरों का मन मोह लिया
पँछी सुर लगाये गाँवो में
इस रस में हमे सराबोर किया
गाँव में किट , पतंगा , उड़ रहे
खेत खार सब खलियानों में
पँछी मस्त मग्न गाये गीत
सावन के गलियारों में
नीले अम्बर का रुख बदला
गाँव की हवाएं भी लहराई है।
पीली चुनरी है धान की बाली
धरती माता भी इठलाई है।
