सुन -ऐ सखी
सुन -ऐ सखी
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उनके बिन मेरा ना कोई संसार सखी,
मिलने आयी करके दरिया वो पार सखी।
दिलभी उनका जाँभी उनकी बतला क्या करूँ,
देख तो अब मैं गई ख़ुद से हार सखी।
हर घड़ी उनको विचारूं ,उनकी राह निहारूं,
वक़्त की मुझपर पड़ी है यूँ मार सखी।
जब भी देखूँ इक वो दर्पण श्रृंगार करूँ,
चेहरा उनका दिखता करती हूँ प्यार सखी।
कितनी ऋतु आईं और आकर के चली गईं,
दिल का दुखड़ा क्या सुनाऊँ क्या सार सखी।