सुख़नवर
सुख़नवर
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नसीबों का जो सिकन्दर हो जाऊँ,
लिखूं मैं गीत सुख़नवर हो जाऊँ।
लुटा दूँ सबपे वफा की इक दौलत,
दिलों में मस्त कलन्दर हो जाऊँ।
मिरे दम से हो शहर में रौनक कुछ,
खुशी में उसके मयस्सर हो जाऊँ।
जो बहता है वो सिमट के साहिल से,
उसी दरिया का समन्दर हो जाऊँ।
तड़पता हूँ कि ज़माना हो रौशन,
चरागे शाम मुनव्वर हो जाऊँ।