सुदामा
सुदामा
कृष्ण के दरबार सुदामा आये हैं
छोड़ के घर बार सुदामा आये हैं
जब पहुंचे श्याम के द्वारे
भिक्षुक सा वेश बना रे
दरबान ने आकर टोका
उनका रस्ता है रोका
समझ न पाये हैं।
तुम काहे रोको भैया
मेरा मितवा कुँवर कन्हया
मैं मित्र मिलन को आया
तुमने क्यों रार लगाया
कहो हम आये हैं
कृष्ण...।
जब दूत संदेशा लाये
आगत का हाल सुनाए
उसे पागल बौरा बताये
और नाम सुदामा सुनाए
नंगे पग धाए हैं
कृष्ण....।
जब भीतर गए लिवाई
पग धो आसन बैठाई
तब गठरी रहे छुपाई
कान्हा ने ली है छुड़ाई
तंदुल प्रभु खाये हैं
कृष्ण...।
धन्य है ये अमर कहानी
नहीं मित्र प्रेम की सानी
ये भेदभाव ना जानी
निश्छलता इसकी निशानी
जगत समझाये हैं
कृष्ण के......।