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Madhu Gupta "अपराजिता"

Children Stories Fantasy Inspirational

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Madhu Gupta "अपराजिता"

Children Stories Fantasy Inspirational

सरसों का साग

सरसों का साग

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आज बालकनी के बाहर खड़ी चाय पी रही थी कि एकाएक मेरी नजर पड़ोस में रहने वाली सुजाता और उसके बच्चे के ऊपर पड़ी जो अपने बच्चे को कुछ खिला रही थी और बच्चा बार-बार मना कर रहा था, शायद उसका मन नहीं कर रहा है, उसका पसंदीदा भोजन नहीं है। नहीं ममा.....कितनी बार बोला है आपसे आप क्यों बनाती हो यह जो मुझे अच्छा नहीं लगता।

मैंने उससे आवाज़ देते हुए पूछ लिया अरे...सुनो रीता क्या बनाया है आज तुमने जो अभी इतना रूठा हुआ है....अरे क्या बताऊँ सुरेखा आज मैंने लौकी की सब्जी बनाई है और इसको खिला रही हूं पर यह खाना खाने को ही तैयार नहीं हो रहा है, बोलता है मुझे लौकी की सब्जी नहीं पसंद आज मै खाना नहीं खाऊंगा, अब तुम्ही बताओ लौकी तो पौष्टिक भोजन में आती है बच्चों के लिए हरी सब्जियां कितनी आवश्यक है यह तो तुम भी जानती हो पर आजकल के बच्चे देखो ना कितने नखरे खाने में दिखाते हैं।

तभी मैंने धीरे से सर हिला दिया और मैं एकाएक अपने बचपन की यादों में जाकर खो गई, मेरा मन अपनी बचपन की धूमिल होती हुई यादों को कुरेदने लगा और मुझे अपना बचपन याद आने लगता है जब मैं सारे घर में उधम मचाती, शैतानी करती तो कभी मां को चिढ़ाती तो कभी पापा की गोद में जाकर बैठ जाती तो पल में भाइयों के साथ झगड़ा करती।

खाने में बहुत ही चूजी थी, माँ हमेशा मुझे इसके लिए गुस्सा- ती रहती थी और समझाती रहती थी बेटा सारी चीजें खाने में खाते हैं क्योंकि भगवान ने जितनी भी सब्जियां बनाई हैं वह हमारे लिए कहीं ना कहीं बहुत महत्वपूर्ण और उपयोगी होती है इसी लिए तो इस ज़मीन पर उगती है साथ में पापा भी हामी भरते जाते थे।

पर मैं कहां उनकी सुनने वाली थी और कहां उनकी बातों का मुझ पर असर होता था। हर दिन में खाने के लिए शोर किया करती थी और रोती थी कि मुझको आज यह नहीं खाना, पर मां मुझे डांटा करती तो कभी प्यार से समझाती और कभी यहाँ तक कि मुझे थप्पड़ भी लगा देती थी। 

एक दिन की बात है मुझे याद आ रहा है माँ ने बड़े प्यार से अपने पास बुलाया और बोली सुरेखा पता है आज मैंने तेरे लिये क्या बनाया है..... मैंने अपनी दोनों बाँहों को उनके गले में डालते हुए कहा बोलो ना... माँ क्या बनाया है आज आपने मेरे लिए.... माँ बोली आज मैंने तेरे लिये सरसों का साग बनाया है और साथ में मक्के की रोटी। 

 यह सुनते ही मेरा मूड बन गया मुझे नहीं खाना सरसों का साग और ना ही रोटी ले जाओ यहाँ से, तब मुझे माँ ने प्यार से, कहानियां सुनाते और समझाते खिलाने की कोशिश करती रही पर मैं अपना मुंह खोलने को तैयार नहीं थी मैं ज़िद पकड़ बैठी कि कुछ और बनाओ। 

मां जानती थी कि बच्चों के लिये हरी सब्जियां कितनी फायदेमंद होती हैं। मां कह जा रही थी पर मैं कहां सुन रही थी मैं तो बस अपनी धुन में ही दीवानी थी मां बोली....जाओ...मैं तुम से बात नहीं करती....मैंने कहा नहीं माँ ऐसे ना बोले पर मुझे यह साग बिल्कुल भी पसंद नहीं है मैं नहीं खाऊंगी।

वो बहुत देर तक सोचती रही क्या करूं कैसे इस बच्ची को समझूँ जिससे यह खाना खा ले, थोड़ी देर उदास बैठे रहने के बाद फिर एकाएक उसके दिमाग में एक युक्ति सूझी और वो बोली सुरेखा तुम थोड़ी देर यही बैठो मैं अभी आती हूँ।

मुझे याद आ रहा है कि मां की आदत थी वो खाने में कुछ ना कुछ नया एक्सपेरिमेंट करती रहती थी आये दिन कुछ ना कुछ नया करती रहती थी कभी कुछ सब्जी के साथ कुछ बना दिया, तो कभी कुछ सब्जियों को डालकर कुछ नया और बना दिया। वह हमेशा एक्सपेरिमेंट करती थी जिससे खाना और स्वादिष्ट हो जाता था, उस दिन माँ ने जाकर साग को कढ़ाई में डाला और डालकर उसमें थोड़ा टमाटर लहसुन और थोड़ा सा आमचूर डालकर उसने फ्रीज में जो पनीर रखा हुआ था, उसको निकाल कर उसके टुकड़े कर साग में डाल कर थोड़ी देर बनने के बाद मेरे पास गरमा गरम कटोरी में लेकर आई देखो......तो सुरेखा.....मैंने क्या बनाया है मैं बड़े ही प्यार से बोली.....बोलो ना... मम्मा क्या बनाया है...?? देखो मैं तुम्हारे लिए पनीर की सब्जी बना कर लाई हूँ तुम्हें बहुत पसंद है....ना और फ़िर माँ ने मुझे वो धीरे धीरे सारा साग पनीर खिला दिया मैं खुशी-खुशी सारा साग बड़े चाव से खा गई।

 तभी पीछे से आती एक आवाज़ ने मुझे फिर से चौका दिया....माँ क्या कर रही हो बाहर खड़ी होकर मेरे लिए जल्दी से खाना लगा दो बहुत जोरों से भूख लगी है और मैं पलटी तो देखा मेरी बेटी खड़ी मुझसे खाने की फरमाइश कर रही है, मैं बीते लम्हों को वहीं छोड़ अपनी बेटी कके गले में हाथ डालते हुए बोली मां हमेशा मां होती है लव यू मेरी बच्ची.....!!


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