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Sushma Tiwari

Others

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Sushma Tiwari

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सरफरोश

सरफरोश

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ये जो कुछ भी हो रहा है

अब मुझे अफसोस नहीं है

हमने ही खेला था खेल दुनिया से

अब दूसरों का इसमे कोई दोष नहीं है।


हाँ मौत तो डराऐगी ही सबको 

आखिर माँ का आगोश नहीं है 

दिया बहुत कुछ प्रकृति ने हमे 

हमे फिर भी तो संतोष नहीं है ।


देखती हूँ बहुत कुछ लेकिन

बयां करने को शब्दकोश नहीं है

मैं मानती नहीं हर किसी को दोषी 

हाँ पर हर कोई निर्दोष नहीं है।


कहते हैं सब पत्थर का मुझे

क्यूँ भला मुझमे आक्रोश नहीं है

मैं बोलती नहीं हूं तो क्या

मेरी कलम तो खामोश नहीं है।


राजनीति पर मैं लिखती ही नहीं 

हाँ इतना मुझमे जोश नहीं है 

चुनते है सरकारों को लोग ही 

हमे वोट देते वक़्त जब होश नहीं है। 


बाजी पलटती है हर खेल की 

हर सोया हुआ बेहोश नहीं है 

याद रह जाती है अच्छाईयां भी 

इंसान इतना एहसान फरामोश नहीं है ।


ज़ज्बा तो बिल्कुल है भरा हुआ

खौल जाए खून वो रोष नहीं है

आजादी सब को चाहिए बुराई से

कोई "आजाद" अब सरफरोश नहीं है।



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