सफ़र जीवन का.. प्रांप्ट 27
सफ़र जीवन का.. प्रांप्ट 27
जीवन से मृत्यु पर्यन्त चलने की प्रक्रिया
काल चक्र के दो पहिये सदृश्य
शैशवावस्था से वृद्धावस्था तक
अन्नप्राशन से विवाह संस्कार तक
नामकरण से ज्ञानार्जन तक
सभ्यता से संस्कृति तक का सफ़र
सोडष संस्कारों की प्रक्रिया
अन्वरत क्रियायमान
जाने कितने मंजर दिखाता है..!
माँ के गर्भ से लेकर संतान के कंधे पर
गृहस्थ से संन्यासी तक है जीवन
जाने कितने मंजर दिखाती है..!
देखा था कल मैंने उस शज़र को
जाने कब से ठूँठेपन को कोस रहा था शायद
पंछियों के कलरव मात्र से खिल उठा था
जो अपने अकेलेपन के बोझ तले
ख़ुद ही दबा जा रहा था,
संभवतः यही होता है वृद्धावस्था स्वयं के
अकेलापन को ढोते ढोते दम तोड़ देता है
जहाँ साथ की जरूरत तनिक अधिक हो..!
बचपन तो उस नवीन पौधे की तरह है
जिसे हर एक कौतुहल और उत्सुकता से देखे
खाद पानी दे सींचता है
फल की आशा से उसे संरक्षण प्रदान करता है..!
अजीब है ना..
किन्तु सत्य भी..!
दरख़्त की विशालता हो या कि..
मनु की महानता
जीवन की सांझ ढलते ही
एक एक कर सब छोड़ जाते हैं.. !
यही सफ़र है हम सब का
और..
यही शाश्वत सत्य भी..!!
