समसामयिक
समसामयिक
1 min
50
लेखनी है मौन
क्या यह शब्द का
उपवास है
मन मे उपजे
सैकड़ों प्रश्नों का
उपहास है।
बढ़ते जाने की जिद
और बेखयाली
इस कदर
क्या यही इक
बिन बुलाई
मौत से यलगार है।
सूने से हैं वार अब
सूने पड़े
त्यौहार सब
जिंदगी की चाह में
यह कौन सा प्रतिकार है।
आज की करनी को
कथनी सी
पढ़ेंगी पीढियां।
कौन से रंग रच बसोगे
यह आपको अधिकार है।
मन मे उपजे
सैकड़ों प्रश्नों का
उपहास है।
लेखनी है मौन
क्या यह शब्द का
उपवास है।।
