समझदारी
समझदारी
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समझा करो ना मुझे
अगर रूठ जाऊं तो मना लिए करो ना मुझे
जाने का कहूं तो रोक लिए करो ना मुझे ,की
तुम्हारी एक आवाज़ की पहली आहट पर रुक जाऊंगा,
वहीँ थम जाऊंगा ,जाने ना दिया करो मुझे,
तुम्हारी इस अमीरों की दुनिया की समझ नहीं है मुझे
बैठा कर प्यार से समझा दिया करो ना मुझे
तुम्हारे सिवा और कोई नहीं है मेरा यहां
इतना तो समझा करो ना मुझे
अब जब यह रोज़ दोहराते दोहराते मुझ पर भी
समझदारों का मुखौटा चढ़ गया है ,की
अब बहुत चाह कर भी नहीं भी नहीं ढूंढ पा रहा हूँ
उस नासमझी में छिपे खुदा को, खो दिया मैंने खुद को, की
समझदारी के आईने में इतना भी ना समझा करो।