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मिली साहा

Children Stories Others

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मिली साहा

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स्कूल के दिन

स्कूल के दिन

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वो भी क्या दिन थे स्कूल के,

लम्हे थे कितने सुहाने मस्ती के,


सुबह-सुबह चल देते बस्ता टांग,

हंसते, खेलते लगाते थे लंबी छलांग,


जल्दी-जल्दी में मां से बाल बनवाते,

हड़बड़ी में कभी तो टिफिन भूल जाते,


बड़े याद आते हैं स्कूल के वो दिन,

रह न पाते थे हम कभी दोस्तों के बिन,


छूट गया कहां वो दोस्तों का खज़ाना,

कितना खूबसूरत था स्कूल का ज़माना,


याद आता लाल काला चूरन खाना,

खाकर फिर एक दूजे को जीभ चिढ़ाना,


दोस्तों का टिफिन खुलते ही लपक पड़ना,

अचार की खुशबू का पूरी कक्षा में फैल जाना,


कितना आनंदित था लंच छुपा कर खाना,

कभी-कभी दोस्तों का लंच भी चट कर जाना,


कभी-कभी स्कूल पहुंचने में लेट होना,

मज़ेदार था वो कान पकड़कर वेट करना,


एक दूजे की नोटबुक में ताका झांकी,

खाली कक्षा में करना टीचर की नौटंकी,


कितनी भी खाते डांट खुश रहते थे हम,

बस उछल कूद की मस्ती में रहते थे हर दम,


स्कूल की छुट्टी का रहता बेसब्री से इंतजार,

बहुत याद आता वो स्कूल वो दोस्तों का प्यार,


पढ़ना-लिखना, खेलकूद, शरारत और मस्ती,

शोर मचाते बाहर निकलना जब होती थी छुट्टी,


पत्थर को ठोकर मारते मारते घर तक ले जाना,

मौज-मस्ती, नोकझोंक कभी रोना कभी हंस देना,


लौट कर ना आएंगे वो दिन वो पल और वो ज़माना,

अब बस उन सुहाने पलों को याद करके ही है खुश होना।



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