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अमित प्रेमशंकर

Others

4.0  

अमित प्रेमशंकर

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श्रीराम की हो चली

श्रीराम की हो चली

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जनक नंदिनी बन संगिनी

श्री राम की हो चली

चली पहन के पांव पैरहन

फफक फफक कर रो चली।।


एक ओर शहनाई बाजे

एक तरफ ममता रोए

एक तरफ नाता टूटे तो

एक ओर अपना होए

यही सोच में जनक सुता

आंसू से कजरा धो चली

जनक नंदिनी बन संगिनी

श्री राम की हो चली।‌


एक बाग से खिलकर टूटकर

पी के बगीया को चली

आत्मसमर्पण कर के रघुकुल

उज्ज्वल करने को चली

पवित्र प्रेम के बंधन में बंध

छुई मुई सी हो चली

जनक नंदिनी बन संगिनी

श्री राम की हो चली।।



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