शहर
शहर
बड़ा शहर,
बड़ी इमारतें,
बड़े लोग,
और उनके
बड़े ख़्वाब।
ज़्यादा कुछ
तो नहीं है यहाँ,
बस बहुत सारे लोग,
और ख़ुशियाँ बिखरी
यहाँ-वहाँ।
इमारतें ज़रूर छूती है
आसमान को
लेकिन उड़ते तो लोगों के
अरमान है यहाँ।
कई सफल हो गए,
कई फिर कोशिश
करना चाहते है,
यहाँ एक-दूसरे से
अंजान होकर भी,
जैसे सबको हम
पहचानते हैं।
घड़ी तो होती है
सबके हाथ पर
लेकिन वक़्त नहीं
दे पाते हैं,
ज़िन्दगी तो यहाँ
जैसे सबकी,
बस करते नियंत्रण,
घड़ी के काटे हैं।
मकान तो,
बड़े बनाते है
लेकिन रिश्ते
नहीं निभा पाते हैं,
फिर भी मुश्किल
समय में,
यही लोग तो,
एक-दूसरे का
सहारा बन जाते हैं।
कई लोगों को इसने दी,
एक नई पहचान है,
कहते सब इसे,
'मुंबई मेरी जान ' है।