शब्द और दूध
शब्द और दूध

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कागज़ो पर
बिखरने को
आतुर शब्द
और मेरी लेखनी
शब्दों को
कागज़ पर उकेरने में
निमग्न
विचारों से उफनता हुआ
मेरा मन !
अचानक
सब कुछ छोड़ कर
दौड़ पड़ती हूँ
मैं
उफनाते हुए
दूध को बचाने!
पर
न दूध को बचा पायी
न मन में
उफनते हुए
शब्दों को !
सब एक साथ
मिल कर बिखर
गये हैं
रसोई के फर्श पर!
और मैं
बेचारगी से
फर्श पर बिखरे हुए
दूध से
छाँटने लगती हूँ
शब्दों को !
पर अब
शब्द कहाँ ?
वो तो समा गये हैं
बिखरे हुए दूध में
और बह रहे हैं
धीरे-धीरे
नाली की ओर !
और मैं
अब लगा रही हूँ
मन मसोसकर
पोंछा
रसोई के फर्श
और अपने
शब्दों पर !