Deepak Srivastava
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मेरी कविता समाज की कुंठित सोच पर आधारित है
कविता समाज को एक आईना दिखाती प्रतीत होती है
वक़्त बदला , क...
तू कोई
वाने नाम धरो ...
क्यों अभिमान ...
वो माँ है न
मातु बन्दना
अब से अम्मी ह...
इस पार से उस ...
हम कुछ खास कर...
हमें बिलकुल म...