धर्मेन्द्र अरोड़ा "मुसाफ़िर"
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पहन लिया ऋतुराज ने एक सुनहरा ताज!
अवनि भी लहरा रही सुरभित चूनर आज!
अधरों पर मुस्कान ले सकुचाए हैं नैन,
दिल में सबके बजे उठा एक सुहाना साज़!
बंदगी
आंखें चुरा रह...
*क्यूँ*
आखिरी हक़ीक़त
धुंधली डगर
होली
कभी खु़दा से
हर दौर में......
खुदा का आसरा
ज़िंदगी का दस...