रंग बैंगनी मै हूँ एक राज
रंग बैंगनी मै हूँ एक राज
रंग-बैंगनी
तेज आँधी जब चले
मैं रुख तो नही बदल सकती
बस किसी पँछी की तरह
मैं परिंदो की परवाज बनूँ
पर काटने वाले भी
लाखों मिल जायेंगे हर मोड़ पर
बस कल की नई सुबह के लिये
किसी पपीहे की आवाज बनूँ
मेरी आवाज को दबा कर
सैकड़ो आगे बढेंगे राहों में
बस उनलोगों की सोच केलिये
मैं एक सुन्दर साज बनूँ
बैठे है कितने कितने शायर
करने को जग की तारीफ
मैं अपनी ही कविता में छुपकर
खुद अपनी ही अंदाज बनूँ
चलते चलते मंजिल तक मैं
पर्वत के उस पार बढूं
तिरंगे की उस तीन रंग में
मैं भी चक्र सा ताज बनूँ
जलते जलते शबनम की बूँदें
गिरने लगे जब धरती पर
उससे जो लोग रौशन हुये
उन सबके लिये मैं नाज बनूँ
बात अगर बुझने की आये
सांस छुपा लूँ सीने में
मन के किसी कोने में फिर
मैं खुद के लिये एक राज बनूँ।