रजनी
रजनी
बही महि पर रक्त की धारा ,
टूटा पलाश का फूल ,
उदय हुआ उस ललित निर्झर से ,
श्वेत वर्णित रसूल।
पीताम्बर सारंग प्रफुल्लित हो ,
क्रीड़ा करें अपार,
आरग्वध की छटा सुशोभित हो ,
दिखे निर्विकार,
सलमे सितारे सब जग तक के ,
सजे अँधेरी साड़ी में ,
रात की रानी इत्र लगाए ,
गीत गए जवानी के,
सप्तपर्णी शीत में ढककर ,
बंसी बजाये अनमोल,
जब आमले के वृक्ष तले ,
मैंने जलाया दीप विभोर,
चिड़िया गावे गीत शयन के
शीतल जैसे भोर।
दूर कहीं एक बीहड़ में
धुरी उड़ती जाती है ,
चंचल धेनु अपने घर
की और भागी जाती है ,
जब तक स्वांस बेस हुए हैं
जग की महकी प्याली में ,
तब तक मेरे दीपक जल तू
विकीर्ण हो खुशहाली में
विकीर्ण हो खुशहली में।
