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Sunita Shukla

Others

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Sunita Shukla

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रितुराज बसंत

रितुराज बसंत

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गगन से धरा तक

सुनहरी रवि रश्मियाँ बरसती

स्वर्णिम आभा छाई चहुँओर

नव ऊर्जा का करती संचार

देखो आया रितुराज बसंत।।


रोम-रोम पुलकित हो जाए

जब सगर धरा बसंत रितु छाए

खिलते पल्लव चटकी कलियाँ

तन-मन भरकर जोश नया

देखो आया रितुराज बसंत।।


मन मयूरा पींगे भरता

तन मतवाला कलरव करता

पवन झकोरे झूम-झूम कर

देते यह संदेश

देखो आया रितुराज बसंत।।


निखरे नित नीरज हो विकसित

डूबा जग मधुकर की भांति

सौरभ का यह मधुर संदेश

देखो आया रितुराज बसंत।।


कोयल गाती मधुप रसगान

पुष्पित कलिकाएँ सुरभित उद्यान

पतझड़ का मौसम है बीता

हुआ शिशिर का अंत

देखो आया रितुराज बसंत।।


रक्तिम पलाश पीले सरसों

प्रकृति ने ओढ़ी चूनर धानी

गुनगुन भँवरें झूलें बौर आम ज्यों

नव कलिकाएँ आस की

भरी उमंगें दिग-दिगंत

देखो आया रितुराज बसंत।।


                     


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