रिश्ते टूट जाते हैं
रिश्ते टूट जाते हैं
ज़रा-सी बात पर,
ज़रा-सी तकरार पर
क़िसी की हार पर,
क़िसी भी बात पर
आजकल रिश्ते टूट जाते हैं।
थोड़े से अहम् में,
थोड़े से भ्रम में….
थोड़े से ग़म में,
दुखों की नम में!
आजकल रिश्ते टूट जाते हैं।
बुलाने वाला बुलाता नहीं,
जाने वाला जाता नहीं!
आने वाला आ जाता हैं ,
दूसरा कोई रह जाता है।
ग़लतफ़हमियों में रिश्ते टूट जाते हैं !
चीख-पुकार में,
सहमी आवाज़ में
नाराज़गी की ओड़ में,
दुनिया की भागदौड़ में…
सच… रिश्ते टूट जाते हैं !
नशे की लत मानकर,
जुए में पैसे हारकर।
माँ-पिता को नकार कर,
भाई-बहन को लताड़ कर।
अक्सर…. रिश्ते टूट जाते हैं।
झूठे वादों की दिवारी,
उसपर भारी ज़िम्मेवारी।
लिहाज़ के जनाज़े पर,
शर्मिंदगी के सिमट जाने पर।
हाँ….. रिश्ते टूट जाते हैं !
रिश्ते नाज़ुक हो चले हैं ……
निभाने वाला निभा नहीं पाता है ,
जीने वाला जी नहीं पाता है।
अकेला भी फिर वह रह नहीं पाता है।
पीड़ा को फिर सह नहीं पाता है।
ऐसे में…. रिश्ते टूट जाते हैं !
आना चाहता है - ‘मैं’ आने नहीं देती।
नासमझी की क़ैद ‘अक्स’ गाने नहीं देती।
रोता है, चिल्लाता है !
कसको में तिलमिलाता है।
और फिर…. रिश्ते टूट जाते हैं !
उलझ जाता है ,
अपने ही ख़्यालों के जाल में।
रखता है अपने को,
बेवरवाहियो के हाल में।
आने वाले कल की ख़बर नहीं इसको..
बस तोड़ देता है
छोड़ देता है …
हिम्मत हार कर,
मासूमियत की गर्दन मरोड़ देता है।
सब्र को नमी देने की जगह!
जल्दबाज़ी से काम लेता है!
खुद को रिहा कर,
दूसरे के कंधे झकझोर देता है!
अपनो को दूर कर,
खुदको ख़ाली राह में मोड़ लेता है।
इंसानियत हार जाती है ,
कलयुग जीत जाता है।
क्योंकि… रिश्ते टूट जाते हैं।।