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Mayank Kumar 'Singh'

Abstract

5.0  

Mayank Kumar 'Singh'

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रात अंधेरी

रात अंधेरी

2 mins
552


रात अंधेरी दोपहर धुंधली,

दिन की अज़ब शाम थी

हर युद्ध को जीत कर भी

उस राजकुमार की हार थी

रात अंधेरी दोपहर धुंधली,

दिन की अज़ब शाम थी !


एक राजकुमारी से,

मिलता था वह

बातें दिल का,

कहता था वह

रातों में ही जीवन जीता,


दिन में बस वह पीड़ा सहता

दिल की गली में जलता था वह,

राजकुमारी की विरहा,

सहता था वह

रात अंधेरी दोपहर धुंधली,

दिन की अज़ब शाम थी !


खंडहर दिल में बस्ती थी जो,

उसमें अपने अरमानों के

लकड़ी से वह, भावनाओं की,

घावों को कुरेदता रहता


उस राजकुमारी की,

राजधानी में मिले

अपमानों को

उपहार समझकर,

सहेजता रहता

रात अंधेरी दोपहर धुंधली,

दिन की अज़ब शाम थी !


एक अंधेरी रात की बातें,

कहता हूं मैं सुन लेना तुम

रात दरअसल ऐसी थी वह,

जिस रात अंबर टूट गया था

धरती उस रात,

फूट-फूट कर रोई थी,


जब राजकुमारी के दरवाजे से,

राजकुमार की अर्थी निकली थी

उस रात वह राजधानी भी रोया था,

जो राजकुमार को ख़ूब घाव दिया था !

रात अंधेरी दोपहर धुंधली,

दिन की अज़ब शाम थी !


राजकुमार की अर्थी देखकर,

राजकुमारी सहम गई थी

उसके मृत शरीर को देखकर,

वह रोते-रोते यह कह रही थी

तुम मेरे हो मोहब्बत के सुहाग,

तुमको मैं कैसे जाने दूं


वह कसमे वादे जो किए थे

उनको कैसे रूठ जाने दूं

तुम मेरे जन्मों-जन्मों की तपस्या,

इस जन्म तुझे कैसे खो जाने दूं !


अभी बाकी है धूप की बिंदिया,

जिसे लगाना मुझे माथे पर

अरे ! सजना चांद के घरवा का कजरा,

मुझे सजाने हैं अपनी आंखों पर

और मुझे पहननी हैं साड़ियां भी,


तुम्हारे नाम की

जिसमे तारें जड़े होंगे,

उस आसमां की!

उसकी बातें सुनकर ,

कोई कुछ न बोला था वहां

उसकी बातें सुनकर बस,


एक रूह रोया था वहां

उस रात को एक दिन समझकर,

एक सूरज जलता हुआ,

उस पल निकला था वहां

रात अंधेरी दोपहर धुंधली

दिन की अज़ब शाम थी।


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