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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

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राम आज भी वनवासी हैं

राम आज भी वनवासी हैं

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राम आज भी वनवासी हैं, बदले कितने दौर ।


घूम रही हैं सूर्पणखाएँ, लेकर ऊँची नाक ।

चिंतित, व्याकुल, बेकल सी हैं, छान-छान कर खाक ।

किन्तु न लक्ष्मण जैसा जग में, दिखता कोई और....

राम आज.........।।


सीता सी प्रतिमाएँ दिखतीं, जग उठती है आस ।

किन्तु वहाँ कल्पित ही लगता, सीता का आभास..।

मन में भरी कलुषता दिखती, तन दिखता है गौर....

राम आज...........।।


बजरंगी, सुग्रीव, जटायू, कहाँ गए सब पात्र ।

रंगमंच या ग्रन्थों में ही, दिखते हैं ये मात्र ।

संत विभीषण को कलयुग में, नहीं सूझता ठौर.....

राम आज.............।।


मंदिर में भी केवल पत्थर, करते हैं आराम ।

गाय और गङ्गा भी लगते, केवल कल्पित नाम ।

किसे लगायें भोग पूछते, रोटी के सब कौर...

राम आज...........।।


जंगल, झरने, पर्वत, नदियाँ और हजारों ग्राम ।

खोज-खोज कर हार गये सब, नहीं दिखे सुखधाम ।

कहाँ गए अब आ भी जाओ, जगती के सिरमौर....

राम आज...........।।



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