राम आज भी वनवासी हैं
राम आज भी वनवासी हैं
राम आज भी वनवासी हैं, बदले कितने दौर ।
घूम रही हैं सूर्पणखाएँ, लेकर ऊँची नाक ।
चिंतित, व्याकुल, बेकल सी हैं, छान-छान कर खाक ।
किन्तु न लक्ष्मण जैसा जग में, दिखता कोई और....
राम आज.........।।
सीता सी प्रतिमाएँ दिखतीं, जग उठती है आस ।
किन्तु वहाँ कल्पित ही लगता, सीता का आभास..।
मन में भरी कलुषता दिखती, तन दिखता है गौर....
राम आज...........।।
बजरंगी, सुग्रीव, जटायू, कहाँ गए सब पात्र ।
रंगमंच या ग्रन्थों में ही, दिखते हैं ये मात्र ।
संत विभीषण को कलयुग में, नहीं सूझता ठौर.....
राम आज.............।।
मंदिर में भी केवल पत्थर, करते हैं आराम ।
गाय और गङ्गा भी लगते, केवल कल्पित नाम ।
किसे लगायें भोग पूछते, रोटी के सब कौर...
राम आज...........।।
जंगल, झरने, पर्वत, नदियाँ और हजारों ग्राम ।
खोज-खोज कर हार गये सब, नहीं दिखे सुखधाम ।
कहाँ गए अब आ भी जाओ, जगती के सिरमौर....
राम आज...........।।
