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Anita Sudhir

Others

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Anita Sudhir

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राख

राख

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सुलगती सी जिंदगी में 

खुशियां हो रहीं राख 

बुझते जा रहे अरमान  

और खत्म हो रही साख


दर्द एक ठहर सा गया 

नयनों से कुछ बह सा गया

दर्द की परछाईयाँ तैरती रहीं

करती रहीं जीवन में सुराख


फटी जेब से गिरता जा रहा

हो जैसे धन पल प्रति पल

भस्म हों ये अनचाहे दर्द 

कि इसके पहले हो सब खाख।


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