परवाह
परवाह
परवाह न कर जमाने की जमाना राह बदल आयेगा।
परवाह कर उनकी जन्म दे, पाल पोस बड़ा किया है।
परवाह कर उनकी जिन अबोधों को जन्म तुमसे मिला है।
परवाह कर उसकी, अपनों को छोड़ तुझे खुदा बनाया है।
परवाह कर उन टिमटिमाते नयनों की जो अमृत बूंद पिलाती।
एक परवाह ही थी सावित्री यमराज से भी लड़ जाती।
परवाह ही एक इंसान को श्रवण कुमार बना जाती है।
मुश्किलों के हर भंवर तोड़ इबारत लिख जाती है।
परवाह ही अमीना दादी के लिए सपना सजा जाती है।
जो ईदी में मिले पैसों से लौह चिमटा खरीद लाती है।
परवाह ही इबादत है जीवन की सुखद संजीवनी घूंटी है।
जो अपनो के मृतप्राय दिलों की अमृत प्याली बूटी है।