प्रतिरूप-प्रेम
प्रतिरूप-प्रेम
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एक स्त्री
ढलकर नदी के प्रतीक में
अपने इतने पाठ
बना सकती है
आश्चर्य होता है
एक स्त्री कविता में
इतने घाटों से
उतर सकती है
आश्चर्य होता है
नदी के सामने भर
कर देने से
एक स्त्री के इतने
चेहरे प्रतिबिंबित हो सकते हैं
आश्चर्य होता है
एक स्त्री
इतना गहरा उतर
कवि के अंदर
उत्खनित कर सकती है
इतनी नदियाँ
आश्चर्य होता है
आश्चर्य होता है कि
एक स्त्री का प्रेम
प्रतिरूप-प्रेम बन जाता है
पृथ्वी की समस्त
नदियों का,
एक कवि की कविता
प्रतिनिधि-उद्गार बन जाती है
दुनिया के समस्त प्रेमियों का...

