पृथ्वी
पृथ्वी
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बेरहम दुनिया वालों करती
पुकार आज अपनी पृथ्वी माँ।
बेरहम दुनिया ने उजाड़ दिया,
नित मेरा श्रृंगार है ।
विकास के नाम पर करते
मुझ पर नित ही प्रहार है।
मेरी हरियाली का करते
सत्यानाश है ।
मेरी हरी चुनरिया को कर
रहे तार -तार
मेरे हरे वृक्षों की कर रहे
मशीनों से मार-मार ।
बिन वृक्ष मेरी काया सूनी
मेरा हरियाली का आवरण
दे रहे उतार ।
हे इंसान मेरे वन-उपवन
उजाड़ कर तुझे है क्या मिला।
मेरे हृदय को चीर कर
इनको है क्या मिला ।
मेरी काया सूनी कर
तड़पाते है मेरा सीना ।
मेरे कष्टों का इनको
कोई नहीं भान है ।
हरा -भरा मेरा संसार
फूल पत्तों से मेरा श्रृंगार।
दरख्त हैं काया मेरी
टहनिया हैं बाहें मेरी।
जीव ,जन्तु, पशु, पक्षी,
मुझ पर विचरते।
मुझ पर ही ये सम्पूर्ण
संसार बसा है।
विकास के नाम पर
नित मेरा दोहन किया।
मेरा शीश काट कर
बोलो तुमको क्या मिला ।
मेरी धानी चुनरिया
रो-रो पुकारती है ।
अब तो चेत ऐ इंसान
करो धरा का सम्मान।
करो पृथ्वी माँ को नमन
रूप रंग देकर उसका बचा लो।
यही होगा हमारा पृथ्वी माँ को
शत्-शत् नमन और वंदन।
पृथ्वी हमारी माता
अम्बर हमारे पिता है।
इनका संरक्षण है
हमारी जिम्मेदारी।
इनके सम्मान से है
हमारा सुरक्षित जीवन।