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Indu Barot

Others

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पृथ्वी का उपहार

पृथ्वी का उपहार

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पृथ्वी ही प्रकृति का सबसे बड़ा उपहार है।

धरा से है अमृत, धरा से औषधि है।

कई रूप समेटें धरती तूने ऑंचल में

सोने की गेंद जैसे भोर का सूरज

पहाड़ से निकलता है।

वहीं बर्फ से ढके पहाड़ चाँदी से

चमचमाते हैं।


चाँदी की थाली सा सूरज सागर

पर सजता है।

वहीं चंद्रमा पृथ्वी के माथे की

बिंदी जैसा लगता है।

जब रात्री में काले आकाश में,

तारे टिम टिम करते हैं।

हर जन जीवन के मन मस्तिष्क

को संतप्त करते हैं।


प्रकृति छलकाती अपना सौंदर्य 

समेटे सब अपने ह्रदय में।

ये धरा ही तो सभी ग्रहों का हार है।

पक्षी गाते सांझ सवेरे

भरते नभ में लम्बी उड़ान है

भौरें भी करते फूलों का सोपान है।


मधुमक्खियाँ भी करती हैं

भुन भुन का गान हैं।

मिल फूल पत्तों संग हवा

छेड़ती अपना ही तान है।

नदियों की कल कल की ध्वनि।

फैलाती स्वच्छ हवा संग खुशबू

भीनी भीनी।


तू बनकर जननी, देती जन्म ऋतुओं कों,

कहीं सूखा रेगिस्तान तो कहीं हरियाली

और धान है।

भू, धरा,भूमि ,धरती,अवनी तेरे अनेको नाम है।

हमें सदा सींचना ही तो तुझ मॉं का काम है।

सदा रहो मॉं तुम हरी भरी और जल से पूर्ण 

तुम ही ने तो ले रखा हर भार है।

कई रूप समेटे पृथ्वी तूने ऑंचल में 

तू प्रकृति का सबसे बड़ा उपहार है।



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