प्रकृति का फाग
प्रकृति का फाग
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फागुन आया तरु गाते, कोयल भी मतवारी है ।
प्रमुदित-पुष्पित मन-उपवन, रंगों पर दिल हारी है।।
लाल पलाश हृदय भाए, पीत धरा उर है छाए।
महके महुआ मदमाता, अमलतास आहट आए।।
गुलमोहर गुन-गुन गाए, प्रकृति लगे सुकुमारी है।
फागुन आया तरु गाते, कोयल भी मतवारी है।।
चहुदिशि वासंतिक खुशबू, आनंदित हो मन खिलते।
कण-कण जगती तरुणाई, प्रणय निवेदन को मिलते।।
कवि मन प्यासा लिखने को, झकझोरे मन डारी है।
फागुन आया तरु गाते, कोयल भी मतवारी है ।।
दूर गए थे जो पंछी, लौटे अपने हैं घर को ।
हर्षित है तरुवर-पल्लव, मिलकर प्रीत समंदर को ।।
बर्फ पिघलते अब पल-पल, सरि से मिलना जारी है।
फागुन आया तरु गाते, कोयल भी मतवारी है।।
