परिश्रम
परिश्रम
नहीं घबराना तुम्हें किसी से,
यूूँ ही आगे बढ़़ते जाना है।
किया जो वादा स्वयं से तुमने,
उसको अब तुुुुुुुुुम्हेें निभाना है।
कठिन डगर हो, कठिन सफर चाहे,
माननी नहीं है हार तुमको।
कर मन-मस्तिष्क को मजबूत अपने,
करनी है हर चुुुुुुुनौती स्वीकार तुमको।
आंंधी-तूफान से क्या कभी
किसी वृक्ष को डरते देखा है,
तटस्थ हो खड़ा रहता वही,
यही उसकी जीवन-रेेेखा है।
जो शाखा गिरकर बिखर जाती,
फिर कभी नहीं वो जुड़ पाती।
हिम्मत रख जुड़ी रहती अपनी जड़ों से जो,
उसी पर तो फूल और फल को खिलते देखा है।
माना मंजिल पाने की राह आसान नहीें होती,
परन्तु परिश्रमी व्यक्ति की कभी हार नहीं होती।
भुुुुलाकर तुमने दिन और रात्रि का अंतर,
कुुछ कर दिखाने का तभी तो ख़्वाब देखा है।
ख़्वाब पूरा करने का ज्यों-ज्यों दिवस नज़दीक आया है,
परिश्रम के हर क्षण ने तुमको कुुुुन्दन सा दमकाया है।
समस्त समाज को गौरवान्वित कर तुुुुमने,
अपनी सफलता का परचम लहराया है।
ज्ञान का खजाना जो था अर्जित किया,
उसकी उपयोगिता दिखाने का अवसर आया है।
जिस धरा ने तुुुुुुमको पाल-पोस कर बड़ा किया,
उसके प्रति कर्ज चुकाने का मौका तुमने पाया है।
हे मनुष्य, हर क्षेत्र मेेेें तुुुुमको,
कुुछ यूँ चमत्कार दिखाना है।
इस धरा पर मानव-जाति के प्रति,
अपना योगदान दर्ज करवा जाना है।