पहला प्यार
पहला प्यार
नौ माह तक जिसकी कोख में रहे थे,
और किसी को न जानते थे।
दुनिया को तो कभी देखा ही न था,
केवल उस छोटी-सी, महफूज़ जगह को ही
अपनी दुनिया मानते थे।
जब केवल एक पेशी का था यह देह,
न था किसी चीज़ का मोह।
जब पहली बार यह दिल था धड़का,
उस दिल से एक अनोखा नाता था जोड़ा।
उस ममता-भरे मुख को तो देखा ही न था,
फिर भी प्यार हो गया था,
पहला प्यार!
वो प्यार जो हर किसी को होता है,
एक नन्हे शिशु का अपनी माता से।
जो उस पहली किलकारी द्वारा अपना प्यार बयान करता है,
प्यार-भरी उन आँखों से,
प्यार की एक अनोखी परिभाषा दर्शाता है।
ममता-भरा संबंध है यह,
भावनाएँ समझ जाते है बिना कुछ कहे।
यह प्यार अनोखा है,
हर किसी को होता है,
क्योंकि हम भी कभी शिशु थे,
तभी तो बड़े हुए हैं,
क्योंकि प्रत्येक मनुष्य समान है,
प्रत्येक का जन्म किसी की कोख से हुआ है।
इसलिए कोई बड़ा नहीं,
कोई छोटा नहीं,
सब समान हैं,
किसी माता की प्यारी-सी संतान हैं।
इतनी ताक़त है इस प्यार में,
कि निभाते रहे, तो मिल जाए सच्चा यार।
क्योंकि यह तो है एक उपहार,
उस भगवान का,
जिसे पूजे समस्त संसार।
