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पैग़ाम

पैग़ाम

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अगर चे बुत परसती है हराम मोमिन

दिल मे ख्वाहिशों का मुजस्समा तोड़ पहले


वक़्त देता है क़तरे को भी गुलों का बिस़तर

समुन्दर बेकरारी और तकब्बुर छोड़ पहले


तेरी आँखों की सुरखी बदल सकती है तकदीरें

कहो दीदे नज़र से बरसना छोड़ पहले


मुल़क ऐ आज़ादी के मायने तुम जानोगे कैसे

इस ज़मीं पे घुटनों से चलना छोड़ पहले


कर यकीं कल मिल जाये जनाज़े को कांधा

तो आज दिलों को तोड़ देना छोड़ पहले


अजर देगा इबादतों का ख़ुदा ये तो तय है

मगर ख्वाहिशे अजर तो छोड़ पहले


मैं तुझसे कहीं ज़्यादा हूँ पैरोकार मोहब्बत का

मगर तू सरहदों पे शरारत छोड़ पहले


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