पैबंद।
पैबंद।
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फटेहाल जिंदगी में कितने पैबंद,
जो सिल रहे है वक्त के धागों से।
दो रोटी काफी नहीं,
जीने के लिए अब,
कुछ ज्यादा चाहिए,
जीने के लिए अब।
अधूरे सपनों के बीच,
गुजरती है जिंदगी,
दबी हुई ख्वाहिश के बीच,
गुजरती है जिंदगी।
मकान है लेकिन घर नहीं,
टपकती छत के साये में,
घुल रहे हैं सपनों के रंग,
टपकती छत के साये में।
दम तोड़ती उम्मीद के बीच,
बढ़ रहे हैं हम बेपरवाह,
नई रोशनी की उम्मीद के बीच,
बढ़ रहे हैं हम बेपरवाह।
फटेहाल जिंदगी में कितने पैबंद,
जो सिल रहे हैं वक्त के धागों से।