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nutan sharma

Others

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पाती

पाती

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मैं पाती लिखकर के उनको बुलाती रही।


याद रह रह के उनकी सताती रही।

वो जाके बस गए द्वारिका में मनमोहन।

मैं गोकुल में जीवन बिताती रही।


मैं पाती लिखकर के उनको बुलाती रही।


वो सारंग पर, जो सजाया था मस्तक पर।

वो राजमुकुट के पीछे से जब झांकता था।

उसकी छवि रह रह के मुझको लुभाती रही।


मैं पाती लिखकर के उनको बुलाती रही।


छोड़ मुझको अकेले वो उद्धो संग चल दिए।

मैं जलती रही बाती बिन दिए।

विरह की वेदना मुझको जलाती रही।


मैं पाती लिखकर के उनको बुलाती रही।


सारी दुनिया के मालिक वो मेरे श्याम हैं।

मैं राधा उनकी वो मेरे घनश्याम हैं।

मैं बिछड़ के भी उनसे, उनके हृदय में रही।।


मैं पाती लिखकर के उनको बुलाती रही।


बिना उनके रहा एकाकीपन मेरा जीवन।

किंतु वो न जानें बिन उनके निराधार है जीवन।

देखते देखते राह उनकी मैं पलकें बिछाती रही।।


मैं पाती लिखकर के उनको बुलाती रही।


नाम उनका जुड़ा बस मेरे नाम से।

मेरी प्रीत बस जुड़ी है मेरे घनश्याम से।

जन्मों से मैं सिर्फ उनकी दासी रही।


मैं पाती लिखकर के उनको बुलाती रही।


प्रेम उनका ही तो बस मेरे पास था।

दूर होने का उनसे मेरे हृदय में त्रास था।

फिर भी उनके हृदय में बसी मैं रही।


मैं पाती लिखकर के उनको बुलाती रही।



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