निर्मोही
निर्मोही
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हे कान्हा तुम हो निर्मोही
ना समझे तुम राधा को ही।
तन के तो तुम थे ही सांवरे
मन के भी क्या हो गए कारे।
जगा के मन में प्रीत किसी के
बसा के मन में भाव प्रेम के।
भूलना तुम्हें किसने सिखाया
क्यों विरहा में गये छोड़ के।
मंद मंद चले पवन वसंती
छाई है चहूं ओर हरियाली।
तड़प रही है विरहन राधा
देख के कुंज पीली पीली।
हे कान्हा तुम हो निर्मोही
ना समझे तुम राधा को ही।
