निर्भया का इंसाफ़
निर्भया का इंसाफ़
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आज सुबह नज़ारा कुछ अलग था
मौसम खुशमिज़ाज,
फूल भी खिलकर कर रहे थे अपनी खुशी इज़ाद।
आज सुबह नज़ारा कुछ अलग था..
हवा ने ली थी एक ताज़ी रफ़्तार,
मानों पूरी फ़िज़ा कर रही अपनी ज़ीनत का इज़हार !
माज़रा कुछ समझ न आया,
मैंने मुस्काती कली से पूछा..
आखिर इस बदलाव की वजह क्या है?
कली की मुस्कान के पीछे ,
एक आँसू छलक पड़ा,
बोल उठा "निर्भया" के दर्द से,
मंज़र आज ये बरस पड़ा ..!
पुष्प कली की या घर के बिटिया की,
इंसाफ से मौसम महक उठा !
देर हुई अंधेर नहीं,
इसलिए ये मंज़र चहक उठा ..!
