नारी
नारी
तुम मातृ सुता भगिनी भार्या, हर तृप्त हृदय की चाह हो तुम।
हो कामदेव की रति तुम ही, एक अंतहीन सी राह हो तुम।
तुम गंगा जमुना सरस्वती, सतलुज का तीव्र प्रवाह हो तुम।
तुम ही कश्ती तुम ही मांझी सागर के जल की थाह हो तुम।
शिव के पिनाक का भार तुम ही, श्री हरि का चक्र सुदर्शन हो।
हो कान्हा की मुरली तुम्ही , तुम सब वेदों का दर्शन हो।
हो सूर्यदेव का तेज तुम्ही, चन्दा की शीतल छाया हो।
तुम इंद्रधनुष के सात रंग मति को हर ले वह माया हो।
तुम पांडु सुतों की पांचाली उर्वशी मेनका रम्भा हो।
सावित्री अनुसूइया तुम ही , तुम साक्षात जगदम्बा हो।
प्रभु रामचन्द्र की सीता तुम , कृष्ण की प्रेयसी राधा हो।
तुम कमला ब्राह्मी पार्वती शंकर के तन का आधा हो।
तुम सारंधा जीजाबाई लक्ष्मी झांसी की रानी हो।
हो दुर्गावती अहिल्या तुम हर दिन एक नई कहानी हो।
हो देवराज का वज्र तुम ही, तुम धर्मराज का भाला हो।
तुम गदा भीम की कालजयी पार्थ के क्रोध की ज्वाला हो।
सुन कांप उठे जिसका गर्जन, भादों की घटा घनघोर हो तुम।
खुद बनी हो 'अबला' कब किसने कहा कमजोर हो तुम।