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Bhavna Thaker

Others

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Bhavna Thaker

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मुन्तज़िर

मुन्तज़िर

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मुन्तज़िर हूँ ज़िंदगी तेरी कसौटी की, 

हर एक आह पर 

मन चमकता है कुंदन सा,

मेरे दामन ने काँटों से दोस्ती की है 

फूल का मखमली एहसास 

चुभता है कंकर सा,

कब दिया तूने सिल्की मरहम?  

अब तो 

पथरीली राह की आदत हो चली है,

होगी तू सुरीली किसी और के लिए 

मैंने तो दूर-दूर तक सन्नाटों की आहट ही सुनी, 

हर दर्द का इलाज है लाज़मी 

मेरे ज़ख़्मों को रास आ गई है नासूर की नमी,

ए ज़िंदगी भेज दे तू जब भी मन करे तेरा

चुनौतियों का सैलाब,

मेरे हौसले की दहलीज़ पर हिम्मत खड़ी है।


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