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Arvina Ghalot

Others

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Arvina Ghalot

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मुंतजिर है जमाना

मुंतजिर है जमाना

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मुंतजिर है जमाना 

बोझिल मन सौ टन से भारी।

फिर भी सोचने की नहीं जाती बीमारी।


दुनिया भर के रिश्तों का बोझ।

नन्हे ख्यालों के बुलबुले उठने लगे।


हर रिश्ते की अपनी अपनी सोच।

निभाने की कितनी भी हो तैयारी।


दूसरे की तराजू में उसका पलड़ा भारी

हम कोशिश पे कोशिश कर ले तो भी।


उसने तेरी न मानने की पूरी की है तैयारी

कर लो क्या करना है पासंग ही दुनियादारी।


वजन हाथ पर जितना रखते जाओगे।

उतना ही रिश्ते-नाते निभा पाओगे।


जो हाथों में लिफ़ाफे कम वजनी ले जाओगे।

देखना संबंधों में मौन को मुखरित पाओगे।


समझो रिश्ते नोटों की वेदी चढ़ गए।

हम यूं ठगे अंजाम को देखते रह गए।


पत्थर भी पिघलते है सुना था कभी।

इंसानियत के नाम पे लोग ज्वाला मुखी हो गए।


भस्म में दबी चिंगारी चिंगारी न रह 

जाय।

शोलों को भड़कते देर नहीं लगती।


बूझा दो स्नेह बूंदों से रिश्तों की नफरत।

मुंतजिर है जमाना एक एहसान क्यूं न कर जाए


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