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दयाल शरण

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दयाल शरण

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मरीचिका

मरीचिका

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हर रोज

नए स्वप्न ना 

दिखाया करो

हमारी जेब पे

बोझ ना 

बढाया करो


सभी की 

ख्वाहिशों में है

पतंग 

बनकर उड़ना

दिखाओ आसमान 

तो उसे 

जमीन पे लाया करो


धूप जो सुबह थी

शाम तक ढल 

जाएगी

छांव ना बनों

मगर

सुबह को शाम

ना बताया करो


वो जो फूल हैं

कनेर के

बिखरे हैं

अलसुबह हमारे

आंगन में

आंधियाँ बनके

इन्हें बेतरतीब

ना भगाया करो


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