मरीचिका
मरीचिका
1 min
543
हर रोज
नए स्वप्न ना
दिखाया करो
हमारी जेब पे
बोझ ना
बढाया करो
सभी की
ख्वाहिशों में है
पतंग
बनकर उड़ना
दिखाओ आसमान
तो उसे
जमीन पे लाया करो
धूप जो सुबह थी
शाम तक ढल
जाएगी
छांव ना बनों
मगर
सुबह को शाम
ना बताया करो
वो जो फूल हैं
कनेर के
बिखरे हैं
अलसुबह हमारे
आंगन में
आंधियाँ बनके
इन्हें बेतरतीब
ना भगाया करो
