मजदूर
मजदूर
अंगारों - सी तपती धूप हो,
कड़कड़ाती पेट की भूख हो।
नहीं कभी वह थकता है,
बदा क़दम नहीं रुकता है।
सतत कर्मरत वह रहता है,
नहीं किसी से कुछ कहता है।
पसीना ओज तन से टपकता है,
फिर भी सब कुछ वह सहता है।
हर वक्त रहता वह तो तैयार है,
संकट से नहीं मानता हार है।
जीवन से थका हुआ मजबूर है,
बंधु ! यही तो वह मजदूर है।
इमारत, सड़क, खेत - खलिहान हो,
जिसके लिए " कर्म पथ" प्रधान हो।
हर जगह होता शोषण अपमान हो,
जिंदगी से आज वह परेशान हो,
आत्म हत्या करता मजदूर किसान हो,
फिर मेरा देश यह कैसे महान हो।
मुख - मंडल पर उसके मुस्कान हो,
दुनिया में उसकी भी एक पहचान हो ।
"कर्मयोगी " का चारों ओर सम्मान हो,
ऐसा ही अब ये मेरा हिंदुस्तान हो।
मेहनत - हौसला तो भरपूर है,
बंधु ! यही तो वह मजदूर है।
