मि. शैतान
मि. शैतान
1 min
185
एक थे मि. शैतान,
सबको मुहल्ले में करते परेशान।
दुनिया को भाए अपने काम ,
उनको भाए सपने और आराम।
दिन भर चलाएँ शब्दों के बाण,
करे ना किसी का लिहाज।
दुनिया जैसे हो उनकी ग़ुलाम,
ऐसे धौंस दिखाएँ ये दिन रात।
सबने जब सबक सीखाने की ठानी,
भूल गए ये अपनी मनमानी।
उलटी पड़ गई एक दिन,
इनकी चाल,
शरारतें सारी हुई तमाम।
हाथ जोड़ बोले -मानी मैने हार,
कहूँगा ना अब आ बैल मुझे मार।