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महिला दिवस

महिला दिवस

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भारत जैसे सभ्य देश में ,

संस्कृति के रक्षक देश में

मैत्रेयी, गार्गी जैसी विदुषियों के देश में

लक्ष्मीबाई,चेन्नम्मा जैसी वीरांगनाओं के देश में

हजारों महिलाएँ जहाँ बंधन तोड़कर

बना लेतीं हैं खास जगह , ऐसे देश में


क्या सचमुच आवश्यकता है महिला दिवस मनाने की?


जैसे समाज देता है स्त्री को

एक दिन का सिंहासन और मुकुट

एक दिन का मनोरम खिलौना

कि लो खेलो , दिल बहलाओ आज

और सहो अगले ८ मार्च तक

मुँह बंद किये- दर्द और तडप को,

और मुस्कुराकर मनाओ

अगला महिला दिवस!


सीता, सावित्री , पंचकन्याओं की पूजा

आदिशक्ति सरस्वती लक्ष्मी की पूजा

भारत में होती है , हर जगह नारी की पूजा,

माता बहन पत्नी बेटी रिश्तों के जाल में

महिमामय वेदों और इतिहास की आड में,

आज नारी को भोगवस्तु मानकर हो रहे अत्याचार के हाल में ,

मासूम कलियाँ या निर्भयाओं का जीवन रौंधनेवाले शैतानों की दुनिया में ,


क्या सचमुच आवश्यकता है महिला दिवस मनाने की!


स्त्री ने सबको जन्म दिया ,

अपना सबकुछ लुटा दिया,

पीडा सही , मारी पीटी गयी,

व्रत रखे, सती भी हुई

उसे तिमने क्या दिया ?

दर्द, लाचारी, अपमान!

स्त्री चाहती है बस प्यार और अपनापन ,

वांछनीय सुरक्षा , सम्मान, आत्म-

सम्मान


तब सचमुच आवश्यकता नही रहेगी

भारत में एक दिन महिला दिवस मनाने की!




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