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Shraddhanjali Shukla

Others

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Shraddhanjali Shukla

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मेरी ख्वाहिश

मेरी ख्वाहिश

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सजी थी मांग जब मेरी,

प्रियतम साथ थी तेरे।

उठे अर्थी जो द्वारे से-

मांग मेरी सजा देना।।


      पहना फूलों की माला तुम,

      वर लाये थे घर अपने।

      करो विदा जो घर से तुम-

      मुझे फूलों से सजा देना।।


सजाके लाल जोड़े में,

फेरे लिये थे थामे हाथ।

उठे अर्थी जब मेरी तो-

कांधा तुम भी लगा देना।।


      मुझे पसंद है प्रियतम,

      तेरे लबों की ये मुस्कान।

      रोकर रुखसत न करना-

      थोड़ा सा मुस्कुरा देना।।


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