मेरी ख्वाहिश
मेरी ख्वाहिश
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सजी थी मांग जब मेरी,
प्रियतम साथ थी तेरे।
उठे अर्थी जो द्वारे से-
मांग मेरी सजा देना।।
पहना फूलों की माला तुम,
वर लाये थे घर अपने।
करो विदा जो घर से तुम-
मुझे फूलों से सजा देना।।
सजाके लाल जोड़े में,
फेरे लिये थे थामे हाथ।
उठे अर्थी जब मेरी तो-
कांधा तुम भी लगा देना।।
मुझे पसंद है प्रियतम,
तेरे लबों की ये मुस्कान।
रोकर रुखसत न करना-
थोड़ा सा मुस्कुरा देना।।
