मेरी छवि
मेरी छवि
ईश के प्रसाद सी
कच्ची मिट्टी के घड़े सी, मेरे दर्पण सी चाँदनी का नूर लिए, फूलों की पंखुड़ियों सी मेरी मुस्कान में बसी, उतर आई एक प्यारी परी मेरे आँगन!
मेरा ही अक्स, मेरा ही रुप
जब लिया पहली बार हथेलियों में चाँद के टुकड़े सी नाजुक पराग पल्लव सी गुड़िया को एक सोंघी सी महक अंकुरित हुई महका गई मेरे अंग-अंग को!
तुलसी सी पावन मेरी उर धरा में रमती चलती है मेरा आँचल थामे पग-पग
बेफ़िक्री की चद्दर ओढ़े,
मेरी सुस्त ज़िंदगी में हँसी खुशी की बौछार लिए नन्हें कदमों से इत उत दौड़ती!
ठहर गई मेरी हथेलियों पर एसे जैसे ओस की बूंद पत्तियों पे!
कलकल करती नदिया के धार सी मेरी कोख से उभरी रचना मेरी ही कृति,
रंग देने है मुझे उसे इन्द्र धनुषी सारे ज़िंदगी के हसीन!
वज्र सी बनाकर तराशना है
इस समाज रुपी पहाड़ों से सीने से टकराकर जो जीना है उसे,
हौसलों की परवाज़ देकर उड़ना सीखाना है,
स्थिरता की डोर थमाते देखना है डगमगा ना जाए मेरी गुड़िया के बढ़ते कदम।।