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Prafulla Kumar Tripathi

Others

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Prafulla Kumar Tripathi

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मदमस्त फागुन !

मदमस्त फागुन !

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ऋतुओं ने पाँव बढाए ,

थिरकने लगे घुंघरू।

विदा लिया शीत ऋतु ने ,

बसंत लेकर आया डमरू।।


डम-डम-डम-डम ,

होने लगा सिंघनाद।

मंडी,पगडंडी,खेत-खलिहान ,

हर ओर बसंत ने बनाई पहचान।।


अप्रतिम है प्यारे बसंतोत्सव का यह उन्माद ,

पाँव कुछ और आगे बढ़ा।

मिला एक मस्त फकीर ,

अबीर की झोली लिए ।।


रंग भरी गुलेल ताने ,

मादक हो उठीं ,उठती-गिरती साँसें ।

नाचने लगा मयूर की तरह मायूस मन ,

पल भर में थम गईं दुःख भरी साँसें।।


ताप-संताप,रोग-शोक ,

अंग अंग में चढने लगा रंग फागुनी।

मन हुआ मृदंग ,

रंग गए तन-मन,वन-उपवन।।


गोरी के कपोल पर ,

अंकित कर दिया फागुन ने अपना प्यार।

प्रकृति हर साल दे जाती है ,

बिना पैसे लिए हीरों से भी कीमती यह उपहार।।


जब ससुर भी लगने लगते हैं देवर ,

बड़ों बड़ों के बदल जाते हैं तेवर।

जी हाँ,ठीक पहचाना आपने ,

यही है फागुन , मदमस्त फागुन।।


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