मदमस्त फागुन !
मदमस्त फागुन !
ऋतुओं ने पाँव बढाए ,
थिरकने लगे घुंघरू।
विदा लिया शीत ऋतु ने ,
बसंत लेकर आया डमरू।।
डम-डम-डम-डम ,
होने लगा सिंघनाद।
मंडी,पगडंडी,खेत-खलिहान ,
हर ओर बसंत ने बनाई पहचान।।
अप्रतिम है प्यारे बसंतोत्सव का यह उन्माद ,
पाँव कुछ और आगे बढ़ा।
मिला एक मस्त फकीर ,
अबीर की झोली लिए ।।
रंग भरी गुलेल ताने ,
मादक हो उठीं ,उठती-गिरती साँसें ।
नाचने लगा मयूर की तरह मायूस मन ,
पल भर में थम गईं दुःख भरी साँसें।।
ताप-संताप,रोग-शोक ,
अंग अंग में चढने लगा रंग फागुनी।
मन हुआ मृदंग ,
रंग गए तन-मन,वन-उपवन।।
गोरी के कपोल पर ,
अंकित कर दिया फागुन ने अपना प्यार।
प्रकृति हर साल दे जाती है ,
बिना पैसे लिए हीरों से भी कीमती यह उपहार।।
जब ससुर भी लगने लगते हैं देवर ,
बड़ों बड़ों के बदल जाते हैं तेवर।
जी हाँ,ठीक पहचाना आपने ,
यही है फागुन , मदमस्त फागुन।।
