मैं लिखती हूं क्योंकि..
मैं लिखती हूं क्योंकि..
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जब भी कुछ कहना चाहती हूं
मैं लिखती हूं,
वो शब्द हैं.. वाक्य हैं
..या की कविता,
पता नहीं !!
जब भी चुभतीं कुछ बातें
फांस सी ,
मैं लिखती हूं ,
वो तुम्हें भी चुभतीं हैं
..या कि खलतीं हैं ,
पता नहीं !!
सुनो..
जब तुमसे ही कुछ कहना हो,
मैं लिखती हूं,
..वो बात अलग है कि
तुम समझते कितना हो
..या कि समझना ही नहीं चाहते ,
पता नहीं !!
