मैं दौड़ी पीछे पीछे
मैं दौड़ी पीछे पीछे
बंद कर दिया मैंने,
आज घड़ी को ही।
पक गयी थी
थक गयी थी मैं
हर वक्त समय की खिट पिट से
सुबह चार बजे ही नहीं कि
घड़ी जगा देती है।
फिर एक घड़ी भी बैठने नहीं देती।
वही चुल्हा चौका,
नाश्ता लंच डिनर,
बीच बीच में चाय पानी,
घर की साफ सफाई,
बच्चों को तैयार करना,
स्कूल बस तक छोड़ना,
फिर लेने जाओ।
आज कुछ भी हो जाये,
पतिदेव को भी सोने देना है,
बच्चों को जगाना ही नहीं है।
एकटक घड़ी की ओर देखती रही
ज़ोर नहीं चलने वाला था
आज उसका मुझ पर
मन ही मन तैयार थी मैं,
सब का गुस्सा झेलने के लिए।
नीरव शांति में
बाहर से सुनाई दी,
चार बार डंका बजने की आवाज़
लेकिन मेरी घड़ी बंद थी
अचानक अलार्म बजा,
मैं जग गई ।
घड़ी की सुई आगे आगे,
मैं दौड़ी पीछे पीछे !
