मै हूँ नविता
मै हूँ नविता
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मैं हूँ नविता,
अपने आप मैं एक कविता,
जिंदगी की तपिश में जलता नगीना,
अपने ही अन्तरमन में उड़ता परिंदा।।
ना तो मैं हूँ कमसिन और न कोई कली,
मै हूँ एक भागती-दौड़ती,
मुस्कुराती जिंदगी के हर रंग का लुफ्त उठाती
सिर्फ एक कविता,
मैं हूँ नविता।।
पल-पल सोचूँ, हर पल समझूँ
क्या सोचूँ क्या समझूँ
हर पल यही सोचूँ,
फिर थोड़ा ठहरूँ, थोड़ा सम्भलूँ
अपने रूप को देख थोड़ा शांत हो,
अपने आप से बोलूं
नॉट बैड इट्स गुड
लूकिन्ग ब्यूटीफुल
क्योकिं मैं हूँ नविता
अपने आप मै एक कविता।।
मै हूँ नारी, मैं हूँ सुकुमारी,
मै हूँ पत्नी, मैं हूँ माँ,
मैं हूँ बेटी, मैं हूँ बहन
मै हूँ भाभी, मै हूँ ताई
हर रूप में, मै हर किसी को
अपनी-अपनी सहूलियत के हिसाब से भायी,
पर इन सब के बावजूद भी,
मै हूँ नविता,
अपने आप मै एक कविता।
उम्र का दौर जैसे-जैसे बढ़ रहा है,
वैसे-वैसे मेरा दिल और
दिमाग भी परिपक्व हो रहा है,
एक शान्ति सी अन्दर ही अंदर छा रही है
मेरी जिंदगी जाने क्यो
प्रकृति की ओर खीची चली जा रही है।।
हँसती हूँ मैं अब भी वैसे ही,
हँसती थी पहले जैसे ही
करती हूँ सब वैसे ही,
करती थी पहले जैसे ही
पर कहीं न कहीं कुछ है,
जो भीतर ही भीतर बदले जा रहा है मुझे,
जो मुझसे ही जुदा करते जा रहा है मुझे।।
पर इन सब के बाद भी ,
मैं हूँ नविता,
अपने आप मैं एक कविता
सिर्फ़ मैं हूँ एक नविता।।