मायका
मायका
सुना था बचपन में,
मायका पिता से होता है,
बचपन कि सारी बातें कहां सच हुई है।
हां जो दिल को तक़लीफ देती है, वो सच जरूर होती है।
क्यूं वो सच होती है?
परवरिश करी थी मां ने, प्यार से,
फिर भी पिता को याद कर यह आंख नम हो जाती है।
तजुर्बा होगा उन्हें भी दिल टूटने का,
तभी तो कहते थे, मायका पिता से होता है।
कहते है वक्त हर ग़म की दवा है।
ना, घाव जितना भी पुराना हो, ताज़ा ही होता है।
बुलाती तो जननी भी प्यार से है,
पर दिल तो दिल है जो मिलता है वो वो कहां चाहता है।
आंखे खाली कुर्सी पर बस उनको ढूंढती है।
कहां गई वह मुन्हार, वह हर पल की मीठी सी फटकार,
कोई डांटता नहीं अब उम्र के इस दौर में।
मर्ज़ी के मालिक बन गए है, बड़े हो गए है शायद अब।
कीमत चुकाई हुई है भारी, बड़े होने की।
शायद यही जीवन चक्र है,
मायके का लाड पिता से ही है भाई।
प्रभु ने इसलिए शायद नारी दिल से मजबूत बनाई।
