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क्षमा

क्षमा

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प्यार की दुनिया बनानी है, इसमें क्या खुदगर्ज़ी है ?

चार दिन की जिंदगी है, कैसे जीना वो तेरी मर्ज़ी है ।


प्यार कहाँ टिक पायेगा, जब गुस्से में दिल तपता है,

क्रोध में आदमी जलता है, ना जीता है ना मरता है ।


इंसान मात्र भूल का पात्र, बात बड़ी ये आम है,

दिल में बसाना राम है, रावण का नहीं यहाँ काम है ।


गलती इंसानो से होती है, इंसान बनके व्यवहार करो,

क्षमा इंसान का गहना है, खुले दिल से इस्तेमाल करो ।



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