किस्सा फ़टी जेब का
किस्सा फ़टी जेब का
मैं चला एक दिन मस्ती में,
दुनिया की सैर करने को।
सर पर टोपी हाथ में छड़ी,
आनन फानन में चलने को।
उठायी अटैची रखा सामान,
की तैयारी बड़े अरमान।
अंग्रेजों वाला सूट निकाला,
वहाँ जा कर पहनने को।
मैं चला एक दिन मस्ती में,
दुनिया की सैर करने को।
कुछ तो रखीं दवाइयां,
घूमने को नक्शे रखे।
लगेगी भूक तो सोच लिया,
खरीद के भोजन करने को।
मैं चला एक दिन मस्ती में,
दुनिया की सैर करने को।
कर दिया है अब कमर बन्द,
बारी है कदम बढ़ाने की।
समझ नहीं आ रहा कैसे रोकूँ,
मन में उठते अरमानों को।
मैं चला एक दिन मस्ती में,
दुनिया की सैर करने को।
बस का समय निकट था,
रिक्शा या ऑटो ही कर लूं।
कोई भी मुझको मिला नहीं,
निर्णय किया पैदल चलने को।
मैं एक दिन चला मस्ती में,
दुनिया की सैर करने को।
भीड़ अति बस स्टेशन पर,
मैं तलाशता अपनी वाली को।
तभी लिखा था एक जगह,
अपना सामान संभालने को।
मैं चला एक दिन मस्ती में,
दुनिया की सैर करने को।
फिर दिखी जब अपनी बस,
जान में जान आ गयी।
अपना सामान भी पकड़ा दिया,
बस कंडक्टर को रखने को।
मैं चला एक दिन मस्ती में,
दुनिया की सैर करने को।
मिली सीट खिड़की वाली,
बाहर का अद्भुत नज़ारा था।
दिल किया निकाला फोन,
एक दो फोटो खींचने को।
मैं चला एक दिन मस्ती में,
दुनिया की सैर करने को।
मैं व्यस्त था सेल्फी लेने में,
अपने ही ख्वाबों में खूब।
तभी कंडक्टर ने आवाज़ लगाई,
अपना टिकट दिखाने को।
मैं चला एक दिन मस्ती में,
दुनिया की सैर करने को।
आत्मविश्वास से कहा रुको,
अभी निकाल कर दिखाता हूँ।
हाथ डाला तो जेब फ़टी थी,
अब कुछ रहा न दिखाने को।
मैं चला एक दिन मस्ती में,
दुनिया की सैर करने को।
फ़टी जेब ने मजबूर किया,
वापस घर को आने को।
पसीना छूटा, सपने टूटे,
अब रहा न कुछ बताने को।
मैं चला एक दिन मस्ती मे,
दुनिया की सैर करने को।
